Homeआरतीश्री हित यमुनाष्टक श्री हित हरिवंश महाप्रभु रचित हिन्दी अनुवाद सहित

श्री हित यमुनाष्टक श्री हित हरिवंश महाप्रभु रचित हिन्दी अनुवाद सहित

नमस्कार मित्रों जय श्री राधे मित्रों आज हम फिर से आपके लिए एक नया और भक्तिमय पोस्ट लेकर आ गए हैं मित्रों आज के इस पोस्ट में हम आपको श्री हित यमुनाष्टक श्री हित हरिवंश महाप्रभु रचित हिन्दी अनुवाद सहित प्रदान करेंगे

मित्रों इस पोस्ट में हमने आपको उसका हिंदी अनुवाद तथा ऊपर उसका संस्कृत में लिखा हुआ प्रदान किया है अगर आप इस पोस्ट को अपने मित्रों के साथ भी शेयर करेंगे तो हमारी मेहनत भी सफल हो जाएगी इसलिए मित्रों हम आपसे विनम्र निवेदन है कि इस पोस्ट को जरुर शेयर करें जय श्री राधा वल्लभ श्री हरिवंश

श्री हित यमुनाष्टक श्री हित हरिवंश महाप्रभु रचित


ब्रजाधिराजनन्दनांबुदाभगात्रचन्दना- नुलेपगन्धवाहिनीम् भवाब्धिबीज्दाहिनीम् ॥जगतत्र्ये यशस्विनीम् लसत्सुधापयस्विनीम् -भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहभन्जिनीम् ॥॥ १॥॥


हिन्दी भावार्थ – ब्रजराजनंदन श्री कृष्ण के मेघश्याम अंग पर अनुलेपित चन्दन की सुगंध को लेकर बहने वाली, बार-बार जन्म की कारण अविद्या को जला देने वाली, तीनों लोकों में फैले हुए निर्मल यश वाली, अमृत जैसे जल वाली तथा अति कठिनाई से नष्ट होने वाले मोह का नाश करने वाली श्री यमुना जी का मैं भजन करता हूँ |

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रसैकसीमराधिकापदाब्ज -भक्ति- साधिकां -तदंगरागपिंजरप्रभातिपुंजमंजुलां |स्वरोचिषातिशोभिताम कृतान्जनाधि गंजनाम  भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहभन्जिनीम् || २ ||


हिन्दी भावार्थ – जो श्रृंगार रस की पराकास्ठा श्री राधा के चरण कमलों की भक्ति देने वाली हैं | जल – केलि से घुलकर बहे हुए श्री राधा के अंगराग की केसरिया सघन कान्ति से जो अति कमनीय हैं तथा अपनी श्यामल आभा से काजल की श्याम कान्ति को फीका करती हुई जो अत्यन्त सुशोभित हो रही हैं | अति कठिनाई से नष्ट होने वाले मोह का नाश करने वाली उन श्री यमुना जी का मैं भजन करता हूँ |

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ब्रजेन्द्रसुनु-राधिका-हृदि प्रपूर्य माणयोर्महारसाब्धिपूरयो रिवातितीव्रवेगतः |वहिः समुच्छलन्नवप्रवाह – रूपिणीमहंभजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहभन्जिनीम् || ३ ||


हिन्दी भावार्थ – नंदनंदन और वृषभानुनंदिनी के हृदयों में निरंतर उमड़ रहे दो महासागरों के लबालब भर जाने के अति तीव्र वेग से बाहर उछ्ल रहा नवीन प्रवाह ही श्री यमुना जी का निज रूप है | अति कठिनाई से नष्ट होने वाले मोह का नाश करने वाली उन कलिन्दनन्दिनी का मैं भजन करता हूँ | 


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विचित्ररत्नबध्दसत्तटद्वयश्रियोज्ज्वलांविचित्रहंससारसाद्यनंत पक्षि संकुलांविचित्रमीनमेखलां कृताति दीन पालितांभजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहभन्जिनीम् ||४||


हिन्दी भावार्थ- जो चित्र वचित्र रत्नों से जटित अति सुन्दर दोनों तटों (किनारों) की शोभा से उजली तथा श्रृंगारमई, रंगबिरंगी सुशोभित हो रही है तथा रंग बिरंगे विविध हंस सारस आदि पक्षीगण जिसके तट पर क्रीडा कर रहे हैं और अनेक रंगों वाली मीनों (मछलीओं) की करधनी वाली तथा अनाथ अत्यंत दीन जनों का भी आप पालन करती हैं , कठिनाई से छुटने वाले मोह को नष्ट करने वाली उन कलिन्दनंदनी श्री यमुना जी का मैं भजन करता हूँ |


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वहन्तिकां श्रियां हरेर्मुदा कृपास्वरुपिणीं,विशुद्ध् भक्तिमुज्ज्वलां परे रसात्मिकां विदुः ॥सुधास्त्रुतिन्त्वलौकिकीं परेशवर्णरुपिणीं,भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहभन्जिनीम् ॥५॥


हिन्दी भावार्थ- श्री हरि (श्याम सुन्दर) कि अङ्ग – कान्ति को जो आनन्द पुर्वक् धारण करने वाली हैं, साक्षात् कृपा ही जिनका स्वरुप् है , कई लोग जिनको रस- मयी विशुद्ध (निर्मल), रस भक्ति के रूप से जानते हैं और जो दिव्य अमृत की ही स्त्रोत (निकास स्थान) हैं। श्याम सुन्दर के जैसे वर्ण (रन्ग) वाली उन श्री यमुना जी का मैन भजन करता हूँ जो कठिनाई से छुटने वाले मोह को नष्ट कर देती हैं।


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सुरेन्द्रवृन्दवन्दितां रसादधिष्ठिते वनेसदोपलब्दमाधवाद्भुतैक सद्र सोन्मदां ॥अतीवविव्हला मिवोच्चलत्त्न्गदोर्लतांभजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहभन्जिनीम्॥६॥


हिंदी भावार्थ- श्री यमुना जी ब्रह्मा आदि देवगणों द्वारा वन्दित हैं तथा श्यामा श्याम के प्रेमरस के वशीभूत होकर श्री वृन्दावन मैं ठहर गई हैं | वहां सदा ही प्राप्त माधव के अद्भुत और अदुतीय मधुर रस से वे उन्मत्त है | तथापि अत्यंत व्याकुल (रस की तृष्णा मैं) होने के कारण उछलती हुई तरंग रुपी भुज लताओं वाली है |

दुरंत मोह विमर्दिनी श्री यमुना जी को मै भजता हुं|


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प्रफुल्लपङ्कजाननां लसन्नवोत्पलेक्षणांरथान्ग्नामयुग्मकस्तनी मुदारहन्सिकां ॥नितम्ब चारु रोधसां हरिप्रिया रसोज्ज्वलांभजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहभन्जिनीम्॥७॥


हिंदी भावार्थ- श्री यमुना जी मे खिला हुआ कमल ही उनका मुखार्विन्द् है, शोभायमान नीलकमल ही नेत्र हैं, चकवा – चकवी ही स्तन युगल हैं, सुन्दर हन्सो की श्रेणी हि ग्रेवेय् नामक ग्रीवाभरन (हन्सुली) की शोभा दे रही है। विस्तृत और मनोहर दोनो तट ही नितम्ब हैं तथा वे प्रिया-प्रियतम के प्रेम रस मै पगी हुइ है। कष्ट से दूर होने वले मोह का नाश करने वाली उन श्री यमुना जी का मैं आश्रय ले रहा हूँ|


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समस्तवेदमस्तकैरगम्य वैभवां सदामहामुनीन्द्रनारदादिभिः सदैव भावितां॥अतुल्यपांरैरपिश्रितां पुमर्थसारदांभजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहभन्जिनीम्॥८॥


हिन्दी भावार्थ- संपूर्ण वेदों के शिरोभाग (उपनिषद आदि) के लिए जिनका रस-वैभव अज्ञेय है| नारदादि मनन परायण महानुभाव सदैव जिनकी ध्यान-धारणा करते रहते हैं| शरण में आये हुए जन्म और कर्म से अति नीच पुरुषों को भी जो धर्मं अर्थ काम मोक्ष चारों पुरुषार्थों का सार रस-भक्ति प्रदान करती हैं| उन दुरंत मोह अज्ञान को नष्ट करने वाली श्री यमुना जी का मैं भजन करता हूँ|


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य एत दष्टकं बुधस्त्रिकाल माद्द्तः पठे-त्कलिन्दनन्दिनीं हृदा विचिन्त्यविश्ववन्दितां॥इहैव राधिकापतेः पदाब्ज भक्ति मुत्तमाभजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहभन्जिनीम्॥९॥


हिंदी भावार्थ- जो विवेकी पुरुष समस्त विश्व के द्वारा वन्दनीय श्री यमुना जी का हृदय से ध्यान करता हुआ; इस यमुनाष्टक का भाव पूर्वक प्रातः,मध्यान,साँय तीनो काल पाठ करेगा, वह इस जन्म मे श्री राधावल्लभलाल के चरण- कमलों की उत्तम रस-भक्ति प्राप्त कर लेगा और देहपात के बाद उनकी प्राण- प्रिया श्री राधा की सहचरी का पद निश्चय ही प्राप्त करेगा|


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श्री हित हरिवंश महाप्रभु कृत यमुनाष्टक Shri Hit Radha Keli Kunj Rasik Parikar

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