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किसके श्राप के कारण भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु हुई और यदुवंश का नाश हुआ?

श्री विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण को आज के इस युग में प्रत्येक सनातनी हिंदू के द्वारा पूजा और आदर्श माना जाता है भगवान श्री कृष्ण की नटखट लीलाएं और महाभारत जैसे महान युद्ध में अर्जुन को दिए गए गीता के ज्ञान को आज भी हजारों सालों से हमारे मानव समाज को मार्गदर्शन कर रही है लेकिन कुछ ऐसी अनसुनी बातें भगवान श्री कृष्ण के बारे में है जो आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे

वैसे तो भगवान श्री कृष्ण की अधिकतर लीलाएं आपने सुन रखी होगी या आपके परिवार के बड़े बुजुर्गों ने आपको कथाओं और कहानियों के माध्यम से सुनाया होगा परंतु उन लीलाओं के साथ मैं यह एक विशेष प्रकार की लीला की कथा है जब भगवान श्री कृष्ण अपने देह को त्याग देते हैं या कहे तो वह अपने शरीर को त्याग कर वापस अपने वैकुंठ गोलोक में चले जाते हैं।

श्री भगवान कृष्ण ने अपने भक्तों के लिए इस धरा भूमि पर अनेक प्रकार की देविक तथा असाधारण लीलाएं की है जिससे कि उनके भक्तों को ज्ञान प्राप्त हो सके तथा वह इस संसार एक मोह माया को त्याग कर भगवान के चरणों में स्वयं को समर्पित कर सके जैसा कि आप सभी जानते हैं की जब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीलाएं इस धरा धाम से समाप्त कर ली थी तब उन्होंने अपने देह को त्यागने के लिए एक अनोखी लीला रची उस लीला का वर्णन हम आपको विस्तार रूप में करने जा रहे हैं|

तो अगर आप भी भगवान श्री कृष्ण की ऐसी अनसुनी कथाएं कहानियां पढ़ना चाहते हैं तो हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम आपको इंटरनेट पर पूछे गए आमतौर पर सबसे अधिक श्री कृष्ण के बारे में सवाल जैसे कि कब और कैसे भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु हुई थी ? श्री कृष्ण राधा रानी से शादी हुई थी या नहीं हुई थी ? श्री कृष्ण कुल कितने बच्चे थे ? और भगवान श्री कृष्ण की कुल कितनी पत्नियां थी ? इन सवालों के बारे में हम आपको विस्तृत जानकारी देंगे

प्रिय मित्रों इन सभी सवालों को हम इंटरनेट पर पहले से स्थित जानकारी में से आपको देंगे इसलिए हमारी आपसे विनम्र निवेदन है कि इन सवालों का जवाब आप पूर्ण रूप से सत्य मानने से पहले अपने बड़े बुजुर्गों तथा धार्मिक ग्रंथों से इन सवालों को एक बार जरूर मिलान कर ले।

भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यह माना जाता है कि जब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी सारी लीलाएं इस धराधाम से समाप्त कर ली थी और उन्हें लगने लगा था कि अब इस धरा धाम में उनकी कोई लीला शेष नहीं रही है तब उन्होंने एक विशेष प्रकार की लीला अपने भक्तों को ध्यान में रखकर की थी भगवान श्री कृष्ण के द्वारा की गई यह लीला इस प्रकार है|

एक बार की बात है जब भगवान श्री कृष्ण को वन विहार का मन हुआ तब वह अपने महल से बाहर आकर वन की तरफ जाने लगे उन्होंने वन में काफी देर विहार करने के पश्चात एक पेड़ के नीचे विश्राम करने का निश्चय किया तभी उसी वन में एक जरा नामक बहेलिया जानवरों का शिकार करने के लिए आया उसने एक हिरण का पीछा किया और पीछा करते करते हुए वह हिरण को तीर मारने का प्रयास करने लगा तभी हिरण बहेलिया से डरकर एक पेड़ के पीछे जा छिपा और बहेलिये को लगा कि वह हिरण इस पेड़ के पीछे हैं |

तब उसने अपना तीर कमान निकाला और पेड़ के पीछे निशाना साधने लगा जूही उसने अपना तीर पेड़ की तरफ साध कर छोड़ा तो उसका तीर सीधा भगवान श्री कृष्ण के पैर के तलवे के अंदर जा घुसा अचानक तेज बिजली चमकने लगी मानो की एक बहुत बड़े अपशगुन हो गया हो तब वह बहेलिया उस पेड़ के पीछे जाकर देखने लगा देखते ही उसकी आंखें खुली की खुली रह गई उसको लगा कि जो उसने तीर मारा वह हिरण को लगा होगा परंतु वह तीर भगवान श्री कृष्ण के पैर के तलवे को चीरता हुआ उनके शरीर में प्रवेश कर गया और फिर एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ और भगवान श्री कृष्ण ने अपने शरीर को त्याग दिया |

भगवान श्री कृष्ण की कितनी उम्र थी ?

भगवान श्री कृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व में हुआ था और यह माना जाता है कि जब उन्होंने इस धरा धाम से अपनी लीला समाप्त करके वह बैकुंठ में जानने लगे तब उनकी उम्र 125 साल 8 महीने और 7 दिन थी।

भगवान श्री कृष्ण के कितने नाम है और उन्हें किन किन नामों से जाना जाता है ?

मित्रों वैसे तो भगवान श्री कृष्ण के अनंत नाम है और उन्हें उनके भक्त अनंत नामों से पुकारते हैं और वह हर नाम से अपने भक्तों के दुख कष्ट को दूर करते हैं परंतु मुख्य तौर पर भगवान श्री कृष्ण को 108 नामों से जाना जाता है जो निम्न प्रकार से है इन नामों को हमने नीचे सूचीबद्ध तरीकों से दिया है जिनको आप बड़ी ही आसानी से पढ़ सकते हैं ।

अचला, अच्युत, अद्भुतह, आदिदेव, अदित्या, अजन्मा, अजया, अक्षरा, अमृत, अनादिह, आनंद सागर, अनंता, अनंतजीत, अनया, अनिरुद्धा, अपराजित, अव्युक्ता, बाल गोपाल, बलि, चतुर्भुज, दानवेंद्रो, दयालु, दयानिधि, देवाधिदेव, देवकीनंदन, देवेश, धर्माध्यक्ष, द्वारकाधीश, गोपाल, गोपालप्रिया, गोविंदा, ज्ञानेश्वर, हरि, हिरण्यगर्भा, ऋषिकेश, जगद्गुरु, जगदीशा, जगन्नाथ, जनार्धना, जयंतह, ज्योतिरादित्या, कमलनाथ, कमलनयन, कामसांतक, कंजलोचन, केशव, कृष्ण, लक्ष्मीकांत, लोकाध्यक्ष, मदन, माधव, मधुसूदन, महेन्द्र, मनमोहन, मनोहर, मयूर, मोहन, मुरली, मुरलीधर, मुरली मनोहर, नंदगोपाल, नारायन, निरंजन, निर्गुण, पद्महस्ता, पद्मनाभ, परब्रह्मन, परमात्मा, परम पुरुष, पार्थसारथी, प्रजापति, पुण्य, पुरुषोत्तम, रविलोचन, सहस्राकाश, सहस्रजीत, सहस्रपात, साक्षी, सनातन, सर्वजन, सर्वपालक, सर्वेश्वर, सत्य वचन, सत्यव्त, शंतह, श्रेष्ठ, श्रीकांत, श्याम, श्यामसुंदर, सुदर्शन, सुमेध, सुरेशम, स्वर्गपति, त्रिविक्रमा, उपेन्द्र, वैकुंठनाथ, वर्धमानह, वासुदेव, विष्णु, विश्वदक्शिनह, विश्वकर्मा, विश्वमूर्ति, विश्वरूपा, विश्वात्मा, वृषपर्व, यदवेंद्रा, योगि और योगिनाम्पति।

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