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आदित्य हृदय स्तोत्र ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्

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आदित्य हृदय स्तोत्र संस्कृत


ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥2॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥

सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥

सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥7॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥8॥

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥9॥

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥10॥

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥12॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥

आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥14॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥16॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥17॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥19॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥20॥

तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥22॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23 ॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥24॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥26॥

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥28॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31 ॥

आदित्य हृदय स्तोत्र हिंदी मै

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद :- उधर श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिन्ता करते हुए रणभूमि में खड़े हुए थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया।

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥2॥

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद :- यह देखकर भगवान् अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद :- सबके हृदय में रमण करनेवाले महाबाहो राम! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो। वत्स! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे।

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद :- इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है‘आदित्यहृदय’। यह परम पवित्र और सम्पूर्ण शत्रुओं का नाश करनेवाला है। इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है।

सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥5॥

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद :- सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिन्ता और शोक को मिटाने तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद :- भगवान सूर्य अपनी अनन्त किरणों से सुशोभित ( रश्मिमान् ) हैं। ये नित्य उदय होने वाले ( समुद्यन् ), देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान् नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करने वाले ( भास्कर ) और संसार के स्वामी ( भुवनेश्वर ) हैं। तुम इनका ( रश्मिमते नमः, समुद्यते नमः, देवासुरनमस्कृताय नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराय नमः – इन नाम मन्त्रों के द्वारा ) पूजन करो।

सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥7॥

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद :- सम्पूर्ण देवता इन्हीं के स्वरूप हैं। ये तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत् को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करनेवाले हैं। ये अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरोंसहित समस्त लोकों का पालन करते हैं।

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥8॥

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद :- ये ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण हैं।

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥9॥

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद :- पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुद्गण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करनेवाले तथा प्रकाश के पुञ्ज हैं।

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥10॥

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद :- इनके नाम हैं आदित्य (अदितिपुत्र), सविता (जगत् को उत्पन्न करनेवाले), सूर्य (सर्वव्यापक), खग (आकाश में विचरण करनेवाले), पूषा (पोषण करनेवाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश्य (सुवर्ण के समान), भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्मांड कि उत्पत्ति के बीज), दिवाकर (रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले),

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद :- हरिदश्व (दिशाओं में व्यापक/हरे रंग के घोड़ेवाले), सहस्रार्चि (हज़ारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति (सात घोड़ोंवाले), मरीचिमान् (किरणों से सुशोभित), तिमिरोमन्थन (अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू (कल्याण के उद्गम स्थान), त्वष्टा (भक्तों का दुःख दूर करनेवाले/जगत् का संहार करनेवाले), मार्तण्डक (ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान् (किरणों को धारण करनेवाले)

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥12॥

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद :- हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), शिशिर (स्वभाव से ही सुख प्रदान करनेवाले), तपन (गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर (दिनकर), रवि (स्तुति के पात), अग्निगर्भ (अग्नि को गर्भ में धारण करनेवाले), अदितिपुत्र, शंख (आनन्दस्वरूप एवं व्यापक), शिशिरनाशन (शीत का नाश करने वाले)

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥

हिन्दी अनुवाद :- व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमोभेदी (अन्धकार का भेदन करनेवाले), ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के पारगामी, घनवृष्टि (घनी वृष्टि के कारण), अपां मित्र (जल को उत्पन्न करनेवाले), विन्ध्यवीथिप्लवंगम (आकाश में तीव्र वेग से चलनेवाले)

आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥14॥

हिन्दी अनुवाद :- आतपी (धूप उत्पन्न करनेवाले), मंडली (किरण समूह को उत्पन्न करनेवाले), मृत्यु (मौत के कारण), पिंगल (भूरे रंगवाले), सर्वतापन (सबको ताप देनेवाले), कवि (त्रिकालदर्शी), विश्व (सर्वस्वरूप), महातेजस्वी, रक्त (लाल रंगवाले), सर्वभवोद्भव (सबकी उत्पत्ति के कारण)

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥

हिन्दी अनुवाद :- नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन (जगत की रक्षा करनेवाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा (बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त हैं) । इन सभी नामों से प्रसिद्ध सूर्यदेव! आपको नमस्कार है।

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥16॥

हिन्दी अनुवाद :- पूर्वगिरी-उदयाचल तथा पश्चिमगिरी-अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥17॥

हिन्दी अनुवाद :- आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारम्बार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य! आपको बारम्बार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से भी प्रसिद्ध हैं, आपको नमस्कार है।

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥

हिन्दी अनुवाद :- उग्र (अभक्तों के लिये भयंकर), वीर (शक्ति सम्पन्न) और सारंग (शीघ्रगामी) सूर्यदेव को नमस्कार है। कमलों को विकसित करनेवाले प्रचण्ड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है।

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥19॥

हिन्दी अनुवाद :- आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है। सूर आपकी संज्ञा है। यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है। आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं। सबको स्वाहा कर देनेवाली अग्नि आपका ही स्वरुप है। आप रौद्ररूप धारण करनेवाले हैं। आपको नमस्कार है।

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥20॥

हिन्दी अनुवाद :- आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करनेवाले हैं। आपका स्वरूप अप्रमेय (अनन्त) है। आप कृतघ्नों का नाश करनेवाले, सम्पूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं। आपको नमस्कार है।

तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥

हिन्दी अनुवाद :- आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरि (अज्ञान का हरण करनेवाले) और विश्वकर्मा (संसार के रचयिता) हैं। तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत् के साक्षी हैं। आपको नमस्कार है।

नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥22॥

हिन्दी अनुवाद :- रघुनन्दन! ये भगवान् सूर्य ही सम्पूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। ये अपनी किरणों से गर्मी पहुँचाते और वर्षा करते हैं।

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23 ॥

हिन्दी अनुवाद :- ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से  स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र (अग्नि में हवन) तथा अग्निहोत्री (हवन करनेवाले) पुरुषों को मिलनेवाले फल हैं।

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥24॥

हिन्दी अनुवाद :- (यज्ञ में भाग ग्रहण करनेवाले) देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं । सम्पूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं, उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं।

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

हिन्दी अनुवाद :- राघव! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥26॥

हिन्दी अनुवाद :- इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजा करो। इस आदित्यहृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥

हिन्दी अनुवाद :- महाबाहो! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे। यह कहकर अगस्त्यजी जैसे आये थे वैसे ही चले गए।

एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥28॥

हिन्दी अनुवाद :- उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया।

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥

हिन्दी अनुवाद :- और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की और देखते हुए इसका तीन बार जप किया। इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ।

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥

हिन्दी अनुवाद :- फिर परम पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठाकर रावण की और देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31 ॥

हिन्दी अनुवाद :- उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा– “रघुनन्दन! अब जल्दी करो।”

आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ की विधि

आदित्य-हृदय-स्तोत्र
आदित्य हृदय स्तोत्र

मित्रों इस पाठ को करना बहुत ही आसान है इस पाठ को करने के लिए आपको मैं नीचे कुछ महत्वपूर्ण विधि बता रहा हूं अगर आप इनका नियमित पालन करें तो यह पाठ आपके लिए बहुत ही गुणकारी साबित होगा


सबसे पहले आपको सुबह 5:00 या 4:00 बजे ब्रह्म मुहूर्त में खड़ा होकर स्नान करना है और स्वच्छ वस्त्र धारण करके एक तांबे या अगर आपके पास कोई और लोटा है तो उसमें शुद्ध जल को भर ले उसके बाद में उस जल में रोली चंदन पुष्प इनमें से कुछ भी आपके पास उपस्थित है वह डाल ले और फिर सूर्य देव को अर्पण करें

सूर्य देव को जब आप अर्पण करें तो सबसे पहले गायत्री मंत्र का जाप करें और फिर सूर्यदेव को नमस्कार करके उनके समक्ष आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें

अगर आदित्य स्तोत्र पाठ को आप यदि शुक्ल पक्ष के रविवार में करते हैं तो यह बहुत ही लाभकारी होगा क्योंकि इस समय भगवान सूर्य देव अत्यधिक प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर कृपा करते हैं

अगर अगर इस पाठ का आपको संपूर्ण फल चाहिए तो आपको यह पाठ में नियमित ब्रह्म मुहूर्त में करना होगा और इस पाठ को करने के बाद में भगवान सूर्य देव को नमस्कार करके उनका ध्यान करना होगा अगर यदि आप यह पाठ प्रतिदिन नहीं कर सकते हैं

तो कोई बात नहीं आप हर रविवार को इस बात का अनुष्ठान जरूर करें और एक बात आप जरूर ध्यान दें अगर आप आदित्य स्तोत्र का पाठ करते हो तो किसी भी प्रकार का मांसाहार या नशा बिल्कुल ना करें और नहाने के पश्चात बालों का तेल भी ना लगाएं उसके बाद में आप आदित्य स्तोत्र पाठ करने के बाद में अगर आप तेल लगाना चाहे तो लगा सकते हैं और अगर हो सके तो आप रविवार को नमक का भी सेवन ना करें

आदित्य हृदय स्तोत्र के लाभ और फायदे

मित्रों वैसे तो भगवान सूर्य के आदित्य हृदय स्तोत्र के लाभ और फायदे अनगिनत है जिसे बताना भी मुश्किल है परंतु फिर भी अगर आप इसके कुछ लाभ जो मैं आपको बता सकूं उनको जानना चाहते हैं तो वह निम्न प्रकार से है

जैसे कि अगर आपके कोई भी राज्य पक्ष से पीड़ा या सरकारी मुकदमा चल रहा हो तो इस पाठ के करने से उस मुकदमे से छुटकारा मिल सकता है या आपको मुकदमे में जीत मिल सकती है

अगर आपको कोई बीमारी लगातार परेशान कर रही है जिनमें से मुख्य तौर पर हड्डियों की और आंखों की बीमारी हो तो इस स्तोत्र के पाठ से आपको उस बीमारी से संपूर्ण छुटकारा मिल सकता है

अगर आपको आंखों की बीमारी से कुछ ज्यादा ही परेशानी हो रही है तो इस पाठ को करने के बाद में आप सूर्य भगवान को प्रार्थना करें और आपको आपकी आंखों की बीमारी पूर्णतया खत्म हो जाएगी

और अगर आपका कोई कार्य अटका हुआ है या आपको लाभ की प्राप्ति नहीं हो रही है तो यह पाठ करने से आपके सारे अटके कार्य पूर्ण होंगे और आपका धन संपत्ति का भी बढ़ोतरी होगी

आदित्य हृदय स्तोत्र PDF

आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ कब करें?

आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ अगर आप शुक्ल पक्ष के रविवार को कर पाए तो यह अति महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन इस पाठ का पूर्ण रूप से लाभ होता है और अगर आप नियमित सूर्योदय से पहले यह पाठ करें तो बहुत अच्छा है।

आदित्य हिरदै स्त्रोत बोलना कैसे सीखे?

आदित्य हृदय स्तोत्र बोलना सीखने के लिए आप यूट्यूब पर वीडियो देख सकते हैं वीडियो का लिंक हमने ऊपर पोस्ट में दिया है

आदित्य हृदय स्त्रोत क्या है?

आदित्य हृदय स्तोत्र भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए एक स्त्रोत्र है जिससे आप अपना मनचाहा वर भगवान सूर्य से प्राप्त कर सकते हैं

आदित्य हृदयम का पाठ हमें कितनी बार करना है?

इसका पाठ दिन में एक या सात बार सूर्य उदय होने के बाद करना चाहिए स्नान करके स्वच्छ कपड़े धारण करके भगवान सूर्य के समक्ष बैठ कर करना चाहिए

आदित्य हृदय स्तोत्र कितनी बार पढ़ना चाहिए?

आदित्य हृदय स्तोत्र को दिन में 7 बार या हो सके तो एक बार तो जरूर पढ़ना चाहिए इसे पढ़ने के लिए स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहन कर भगवान सूर्य को जल चढ़ाकर इस पाठ को करना चाहिए

आदित्य हृदय स्तोत्र – Shree Aditya Hridaya Stotram In Sanskrit Shlok

Aditya Hridaya Stotra – with Sanskrit lyrics

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