Homeजीवनकथाभगवान श्री कृष्ण की पत्नी रुक्मणी की मृत्यु कैसे हुई थी ?

भगवान श्री कृष्ण की पत्नी रुक्मणी की मृत्यु कैसे हुई थी ?

नमस्कार दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम आपको भगवान श्री कृष्ण की पत्नी रुक्मणी की मृत्यु कैसे हुई इसके बारे में विस्तृत कथा की जानकारी देंगे दोस्तों भगवान श्री कृष्ण ने रुक्मणी से विवाह किया था विवाह करने के बाद में उन्हें द्वारिका ले आए थे

जब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी सभी लीलाओं को संपूर्ण कर लिया था तब वह पृथ्वी पर से वापस वैकुंठ लोक जाने की इच्छा जाहिर करने लगे तब उन्होंने एक विशेष लीला रची जिस लीला के बारे में हमने आपको पहले से ही बता रखा है

किसके श्राप के कारण भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु हुई और यदुवंश का नाश हुआ?

और उसके बारे में हम आपको अगर थोड़ा सा बताएं तो उसमें जरा नाम के बहेलिया ने भगवान श्री कृष्ण के पेर पर तीर मार दिया था और उसी के कारण भगवान श्री कृष्ण अपने लीला को समाप्त कर वैकुंठ लौटे थे दोस्तों यह लीला भगवान श्री कृष्ण की मर्जी हुई थी और उसी लीला के बाद जब अर्जुन को पता चला कि भगवान श्रीकृष्ण इस धरा धाम से चले गए हैं

और उन्हें एक बहेलिया की तीर की लीला के द्वारा इस धरा धाम को छोड़ा है तब वह बहुत ही दुखी हुए और वह श्री कृष्ण के पार्थिव शरीर को लेने और उनका अंतिम संस्कार करने के लिए चले गए जब वह श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार करने के बाद में वापस द्वारिका पधारे

तब उन्होंने यह दुख भरी सूचना श्रीकृष्ण की सभी रानियों रुकमणी आदि को सुनाई तथा श्रीकृष्ण के माता पिता को भी यह बात बताई इसी बात के शौक को सुनकर श्री कृष्ण की पत्नी रुक्मणी और जामवंती ने तत्काल अपना देह त्याग दिया

तो मित्रो इस कथा के द्वारा आपको यह पता चल गया होगा कि श्रीकृष्ण की पत्नी रुकमणी की मृत्यु कैसे हुई और किस दुखद सूचना के कारण उन्होंने अपना देह त्याग किया था।

क्यों श्रीकृष्ण की मृत्यु के 7 दिन बाद ही रुकमणी की मृत्यु हुई

मित्रों जैसा की आप सभी को पता है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात गांधारी द्वारा अपने सभी पुत्रों को खोने के कारण श्रीकृष्ण को उनका दोषी मानना और उन्होंने श्रीकृष्ण को एक श्राप दिया था जिसमें गांधारी ने कहा था कि है कृष्ण जिस प्रकार मेरे सभी पुत्र आपस में लड़कर अपने प्राणों को त्यागा है

उसी प्रकार तुम्हारा भी यदुवंशी आपस में ही लड़ कर समाप्त हो जाएगा मित्रों इसी श्राप के कारण भगवान श्री कृष्ण ने अपना देह त्याग आ था इस श्राप के कारण जब यदुवंशी आपस में लड़ने लगे तब श्री कृष्ण सब कुछ छोड़कर एक गहरे वन में चले गए और योगनिद्रा में लेट गए उसके बाद में जरा नाम के बहलिये कि तीर के द्वारा उन्होंने अपनी लीला को समाप्त किया

यह तो आप जानते ही होंगे हमने ऊपर इसके बारे में आपको बताया है जब जरा बहिलिये ने श्रीकृष्ण के पैरों पर बाण चलाया तो एक बहुत बड़ी गर्जना हुई जिससे तीनो लोक में सभी को पता चल गया कि श्रीकृष्ण अब इस पृथ्वी पर नहीं है वह अपने वैकुंठधाम चले गए हैं और माता रुक्मणी को भी इसके बारे में पता चल गया था ।

परंतु उस समय रुकमणी माता द्वारका की महारानी थी और उन पर बहुत सी जिम्मेदारियां थी वह अपने नगर वासियों को ऐसे दुख में नहीं छोड़ सकती थी इसलिए वह सब कुछ जानते हुए भी अपने दुख को रोक लेती है जिससे कि द्वारका वासियों को यह पता ना चले कि भगवान श्रीकृष्ण अब इस धरा धाम पर नहीं है

क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने अपने पिता से कहा था कि जब मैं इस धरा धाम को छोड़कर चला जाऊं तो अर्जुन आकर सभी द्वारका वासियों को इंद्रप्रस्थ लेकर जाएगा इसलिए अगर पहले ही सभी नगर वासियों को यह पता चल जाता कि भगवान श्रीकृष्ण नहीं रहे हैं तो द्वारका बहुत ही बड़े संकट में आ जाती

इसलिए जब अर्जुन आए और बचे कुचे सभी द्वारका वासियों और रानियों को इंद्रप्रस्थ लेकर गए उसके बाद में जब वह द्वारका को छोड़कर चले तो द्वारका पानी में डूब गई जब वह इंद्रप्रस्थ पहुंचे तब अर्जुन ने सभी को बताया कि भगवान श्री कृष्ण अब इस धरा धाम पर नहीं है

परंतु माता रुक्मणी को तो यह सब कुछ पता था वह यह सब जानती थी परंतु उनके कंधों पर द्वारका वासियों की बहुत सारी जिम्मेदारियां थी जब वह अपनी सभी जिम्मेदारियों का निर्वाह कर लेती है तब 7 दिनों के बाद में वह सती हो जाती है और उनके साथ ही माता जामवंती भी सती हो जाती है मित्रों इस प्रकार माता रुक्मणी ने श्री कृष्ण के जाने के 7 दिन बाद में अपना देह त्याग किया था।

क्यों भगवान श्री कृष्ण ने रुक्मणी का हरण किया था

नमस्कार मित्रों आज हम जानेंगे क्यों भगवान श्री कृष्ण ने रुक्मणी का हरण किया था और उनसे विवाह किया था मित्रों इस कथा को हम आपको बहुत ही विस्तारपूर्वक बताएंगे तो अगर आप इस कथा को जानने के इच्छुक है तो आखिर तक हमारे साथ बने रहे तो चलिए अभी इस कथा को शुरू करते हैं

मित्रों यह बात उस समय की है जब रुकमणी अपने महल में आने जाने वालों के द्वारा भगवान श्री कृष्ण की प्रशंसा और उनके पराक्रम का वर्णन हर किसी से सुन रही थी तब देवी रुक्मणी ने भगवान श्री कृष्ण के बारे में सुना कि वह बहुत ही बड़े पराक्रमी दयालु और मायावी है

और देवी रुक्मणी ने यह निश्चय किया कि अगर वह किसी से शादी करेगी तो वह भगवान श्री कृष्ण ही होगे अन्यथा वह किसी के साथ भी विवाह नहीं करेगी यह दृढ़ निश्चय उन्होंने बना लिया था

और भगवान श्रीकृष्ण भी रुक्मणी के गुण और उनके सौंदर्य के कारण उनसे विवाह करने के लिए तैयार हो गए थे परंतु रुक्मणी का भाई रुक्मी भगवान श्री कृष्ण को बिल्कुल भी पसंद नहीं करता था वह उनसे द्वेष करता था इसी कारण वह अपनी बहन रुक्मणी का विवाह है शिशुपाल से करवाना चाहता था

परंतु रुक्मणी शिशुपाल से विवाह नहीं करना चाहती थी इसलिए वह अपने भाई की इस योजना के बारे में भगवान श्रीकृष्ण को बताना चाहती थी और यह कहना चाहती थी कि वह उनसे विवाह करने के लिए उन्हें यहां से ले जाए इसलिए रुक्मणी ने अपने एक भरोसेमंद ब्राह्मण को अपना संदेश भगवान श्री कृष्ण को पहुंचाने के लिए कहा

वह ब्राह्मण रुक्मणी का संदेश लेकर भगवान श्री कृष्ण की द्वारिका नगरी पहुंचा जहां पर द्वारपालों ने उस ब्राह्मण को भगवान श्री कृष्ण से भेंट करवाई और उस ब्राह्मण ने रुक्मणी का संदेश श्री कृष्ण को बताया की रुकमणी आपको पति रूप में स्वीकार कर चुकी है और उसका बड़ा भाई उसकी ना मंजूरी के खिलाफ जाकर उसका विवाह है शिशुपाल से करवाना चाहता है

इसलिए रुक्मणी चाहती है कि आप वहां पर जाएं और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार करें और पानी ग्रहण करें यह सब सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने उन ब्राह्मण देवता से कहा कि हे ब्राह्मण देवता जैसे विदर्भ की राजकुमारी मेरे को चाहती है वैसे मैं भी उनको बहुत चाहता हूं परंतु रूक्मी के द्वेष के कारण मेरा विवाह रुक चुका है

परंतु हे ब्राह्मण देवता आप यह देखिएगा कि मैं उन सभी कलंकित क्षत्रियों को युद्ध में तहस-नहस करके अपने से प्रेम करने वाली रुक्मणी को विवाह करके ले आऊंगा और श्रीकृष्ण बिना कोई विलंब करते हुए शीघ्र गामी घोड़ों को बुलाया और उन ब्राह्मण देवता को पहले रथ पर सवार करके उसके बाद में रथ पर चढ़कर एक ही रात में विदर्भ राज्य में जा पहुंचे

उधर रुक्मणी को जब यह पता चला कि भगवान श्रीकृष्ण विदर्भ राज्य में आ पहुंचे हैं तो वह मां मां पार्वती और भगवान गणेश से प्रार्थना करने उनके मंदिर में चली गई और उनसे प्रार्थना करने लगी हे मां आपके पुत्र श्री गणेश गणेश विघ्नहर्ता है और आप उनकी माता हो हे मा मेरी आपसे यही प्रार्थना है कि आप मेरा विवाह है मेरे पसंद के भगवान श्री कृष्ण से बिना किसी संकट के होने दे और यह प्रार्थना कर कर रुकमणी मंदिर से बाहर निकलती है

और भगवान श्री कृष्ण को देखती है तब वहां पर अस्त्र-शस्त्र लिए हुए सभी देश के राजा जो रुक्मणी का विवाह है शिशुपाल से करवाना चाहते थे और वह भगवान श्री कृष्ण के विरुद्ध थे वह देखते रह गए और उनके बीच में से भगवान श्री कृष्ण ने रुक्मणी को अपने रथ पर चढ़ा कर वहां से चले गए यह सब देखकर रुक्मी और वहां पर बैठे सभी राज्य के राजा अपने आपको दिखाने लगे और अपना एक बहुत ही बड़ा अपमान मानने लगे

इतनी सेना शस्त्र होते हुए भी हम श्री कृष्ण को रुक्मणी को ले जाते हुए रोक नहीं सके और वह द्वेष की अग्नि में जलते हुए श्री कृष्ण का पीछा करने लगे और भगवान श्री कृष्ण और उनकी सेना पर बाणों की वर्षा करने लगे यह सब देखकर रुकमणी भयभीत होकर भगवान श्री कृष्ण को देखने लगी

तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि हे रुक्मणी भयभीत ना हो हमारी सेना अभी इन दुश्मनों की सेना का नाश कर देगी और देखते ही देखते भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल और रुक्मी की सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया परंतु रुक्मी को यह अपमान सहन नहीं हुआ

इसलिए वह श्री कृष्ण को मारने के लिए एक अक्षौहिणी सेना लेकर उनका पीछा करने लगा और ललकार ते हुए उन पर एक बाण छोड़ दिया तब भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मी के बाण को काट दिया और बाण को कांटा देख रुक्मी तलवार लेकर भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए आगे बढ़ा

यह देखकर भगवान कृष्ण क्रोधित हो गए और वह भी रुक्मी को अपनी इस दुस्साहस के लिए मारने के लिए आगे बढ़े यह देखकर रुकमणी उनके आगे प्रार्थना करने लगी और कहने लगी हे जगतपति आप तो बहुत बड़े दयालु है आप मेरे बड़े भाई पर दया करें वह तो अधर्मी है वह यह सब कुछ नहीं जानता

तब भगवान श्री कृष्ण रुक्मणी की बात सुनकर शांत हुए और उन्होंने रुक्मी को उसके ही दुपट्टे से बांधकर उसका आधा सर मुंड दिया दीया और उसकी आधी मुछ को भी काट दिया और उसे कुरूप बनाकर छोड़ दिया फिर भगवान श्री कृष्ण ने रुक्मणी को द्वारका लाकर उनसे विधिवत विवाह किया।

क्यों और कैसे हुई थी रुक्मिणी की मृत्यु

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