नमस्कार मित्रों आज हम आपको बताएंगे की धृतराष्ट्र की मृत्यु कैसे हुई 8 सबसे बड़े कारण धृतराष्ट्र को महाभारत का मुख्य किरदार होने के साथ-साथ महाभारत युद्ध का खलनायक भी माना जाता है क्योंकि अगर धृतराष्ट्र चाहता तो वह महाभारत युद्ध को रोक सकता था क्योंकि धृतराष्ट्र के ही कारण उनके पुत्रों को कोई रोक नहीं सका जिससे कि महाभारत जैसा महा विनाशकारी युद्ध हुआ जिसमें करोड़ों लोगों ने बलिदान दिया आज हम आपको उन्हीं सभी कारणों के बारे में बताएंगे जिससे धृतराष्ट्र की मृत्यु हुई।
धृतराष्ट्र की मृत्यु कैसे हुई 8 सबसे बड़े कारण

धृतराष्ट्र का जन्म से ही अंधा होना और उसके बाद इतना महा भयंकर युद्ध होकर उसकी इस तरह मृत्यु होना यह बहुत बड़ी विशेष बात है क्योंकि धृतराष्ट्र के पूर्व जन्म में कुछ ऐसे महापाप किए है । जिससे धृतराष्ट्र की यह गति हुई है आज हम आपको धृतराष्ट्र के 8 ऐसे कारण या 8 ऐसे पापों के बारे में बताएंगे जिनके कारण धृतराष्ट्र की मृत्यु हुई है
- गांधारी के साथ धोखा
जब भीष्म पितामह आने धृतराष्ट्र का विवाह है गांधार राज्य की राजकुमारी गांधारी से कर दिया तब गांधारी को यह पता चला कि मेरे पति धृतराष्ट्र की आंखें नहीं है वह अंधे हैं तब गांधारी ने अपनी पत्नी का धर्म निभाते हुए उन्होंने भी आजीवन अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली
इसके साथ ही जब गांधारी का विवाह है धृतराष्ट्र से होने वाला था तब ज्योतिषियों ने यह बताया कि गांधारी के पहले पति को खतरा है उन्हें किसी प्रकार का प्रकोप है जिससे कि अगर गांधारी विवाह करेंगी तो उसका पति मर जाएगा तो इसी प्रकोप को हटाने के लिए गांधारी का सबसे पहले एक बकरे के साथ विवाह किया गया उसके बाद में उस बकरे की बलि दे दी गई जिससे गांधारी विधवा हो गई और फिर गांधारी का विवाह है धृतराष्ट्र से किया गया।
- गांधारी के परिवार को जेल में डालना
गांधारी एक विधवा थी उसका पहला पति किसी कारणवश मारा गया है और गांधारी का दूसरा विवाह है धृतराष्ट्र से हुआ था जब यह बात धृतराष्ट्र को पता चली तो वह बड़े ही क्रोधित हो उठे और उन्होंने इन सभी का कारण गांधारी के पिता राजा सुबाल को माना को माना धृतराष्ट्र ने बदले की भावना से राजा सुभाष के पूरे परिवार को कारागृह में डाल दिया और उन्हें है कारागृह में केवल एक ही व्यक्ति का भोजन दिया जाता था वास्तव में यह धृतराष्ट्र की एक साजिश थी जिसमें वह केवल एक व्यक्ति का भोजन गांधारी के परिवार को देता था और उसने पूरे परिवार को भूख से मारने की साजिश रची जब राजा सुबाल को धृतराष्ट्र की यह साजिश का पता चला तो उन्होंने निर्णय लिया कि वह भोजन परिवार के सबसे छोटे बेटे शकुनी को देंगे जिससे कि परिवार में केवल एक तो बच सके।
कथाओं में यह भी कहा जाता है कि जब गांधारी का विवाह है धृतराष्ट्र से किया गया था तो गांधारी का सबसे छोटा भाई शकुनी और उसकी एक दासी भी गांधारी के साथ हस्तिनापुर आई थी और वहीं पर रुक गए थे।
- धृतराष्ट्र का दासी के साथ सहवास
कहा जाता है कि जब गांधारी गर्भवती थी तब धृतराष्ट्र ने एक दासी के साथ सहवास से किया था जिससे कि उस दासी से उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी जिसका नाम युयुत्शव था।
- धृतराष्ट्र ने पुत्र के मोंह में करवाया युद्ध
अपने पुत्रों के मुंह में अंधे हो चुके धृतराष्ट्र नीति को जानते हुए भी पांडु के पुत्रों पांडवों के साथ अन्याय कर रहे थे धृतराष्ट्र ने अपने पुत्र मोह में अपने सारे वंश और देश का सर्वनाश कर दिया था धृतराष्ट्र चाहते तो वह अपने पुत्रों की अनीति पर लगाम लगा सकते थे जिससे की दुर्योधन को अप्रत्यक्ष रूप से गलती पर गलती करने की छूट मिलती रही और उसने महाभारत जैसा महा विनाशकारी युद्ध की शुरुआत की धृतराष्ट्र अगर राज सिंहासन पर बैठकर पांडवों के प्रति न्याय करते तो यह युद्ध कभी होता ही नहीं धृतराष्ट्र के छोटे भाई विदुर ने भी धृतराष्ट्र को काफी नीति और अनीति की बातें समझाई पर धृतराष्ट्र ने सब कुछ जानते हुए भी विदुर की बात को नजर अंदाज कर दिया
- द्रोपती के चीर हरण के समय धृतराष्ट्र का चुप रहना
हस्तिनापुर में द्रोपती की भरी सभा में चीरहरण होते हुए भी धृतराष्ट्र और भीष्म जैसे महा नीतिकार होते हुए भी वह दोनों चुप रहे इसी को देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने भी कौरवों को नीति का पाठ पढ़ाने और द्रोपती को न्याय दिलाने के लिए पांडवों के साथ खड़ा होना पड़ा द्रोपती चीर हरण महाभारत की ऐसी शर्मनाक घटना थी जिसके कारण ही पांडवों का कौरवों के प्रति द्वेष स्थाई रूप से उनके मन में बैठ गया यह एक ऐसी घटना थी जिसने प्रतिशोध की आग में सभी को जलाकर राख कर दिया और इसी प्रतिशोध का परिणाम इतिहास का सबसे बड़ा महाभयंकर महाविनाशकारी युद्ध महाभारत हुआ
- धृतराष्ट्र का अधर्म के साथ खड़े होना
वयोवृद्ध और महा ज्ञानी होने के बाद भी धृतराष्ट्र ने कभी भी न्याय संगत बात नहीं की उसने पुत्रों के मुंह में गांधारी की भी न्याय संगत बात को ठुकरा दिया संजय जी धृतराष्ट्र को राज्य के हितों के लिए न्याय संगत बातों से अवगत कराता था लेकिन धृतराष्ट्र संजय की बातों को भी नकार देते थे धृतराष्ट्र हमेशा से ही शकुनी और दूरियों धर्म की धर्म और अन्याय की बातों को ही सच मानते थे वह यह भली-भांति जानते थे कि दुर्योधन और शकुनि की बातें अनीतिकी है। फिर भी वह अपने पुत्रों का साथ ही देते
- भीम को मारने की इच्छा
जब पांडु पुत्र भीम ने दुर्योधन का वध करके उससे समय के सबसे बड़े युद्ध महाभारत का अंत कर दिया था तथा धृतराष्ट्र का अपने पुत्रों के वध को देखकर भीम के प्रति क्रोध और बदले की भावना प्रबल हो उठी वह भीम को मार देना चाहता था जब महाभारत के युद्ध को जीतकर पांचो पांडव धृतराष्ट्र से मिलने के लिए हस्तिनापुर पहुंचे तो भीम के अलावा सभी पांडवों ने धृतराष्ट्र को प्रणाम करके गले मिले परंतु जब भीम की बारी आई तो धृतराष्ट्र के व्यवहार को देखकर भगवान श्री कृष्ण ने इशारा किया और भीम को रोक दिया तथा धृतराष्ट्र के सामने भीम के लोहे की मूर्ति को आगे बढ़ा दिया धृतराष्ट्र बहुत ताकतवर थे उन्होंने भीम की लोहे की मूर्ति को भीम समझकर जोर से दबा कर तोड़ डाला और फिर उसके बाद धृतराष्ट्र भीम को मरा समझ कर रोने लगे पर जब क्रोध शांत हुआ तब श्री कृष्ण ने धृतराष्ट्र को बताया कि आप ने भीम को नहीं उसके पुतले को मारा है तब धृतराष्ट्र को एहसास हुआ
- धृतराष्ट्र के पूर्व जन्मों का पाप
कथाओं में कहा जाता है कि धृतराष्ट्र के पूर्व जन्म के पाप के कारण ही धृतराष्ट्र अंधे थे और उनके सभी पुत्र महाभारत के युद्ध में मारे गए थे
यह कहा जाता है कि पूर्व जन्म में धृतराष्ट्र एक बहुत ही निर्दई और क्रूर राजा थे एक बार जब धृतराष्ट्र पूर्व जन्म में भ्रमण करने निकले तो वह एक नदी में एक हंस तथा उसके बच्चों को तालाब में भ्रमण करते हुए देखा तब धृतराष्ट्र ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि उस हंस के आंखों को निकाल लिया जाए सैनिकों ने अपने राजा की आज्ञा मानते हुए उस हंस की आंखों को निकाल लिया और हंस की दर्दनाक मृत्यु हो गई और यह देख कर हंस के बच्चे भी मृत्यु को प्राप्त हो गए मृत्यु को प्राप्त होते समय हंस ने धृतराष्ट्र को यह श्राप दिया था कि मेरी ही जैसी दशा हुई है वैसी दशा तुम्हारी भी होगी राजा और वह मृत्यु को प्राप्त हो गया इसी श्राप के कारण धृतराष्ट्र का जन्म से ही अंधा होना तथा उसके पुत्रों की मृत्यु होना था
अग्नि में जलकर धृतराष्ट्र की मृत्यु कैसे हुई
महाभारत के युद्ध की समाप्ति के 15 वर्षों के पश्चात धृतराष्ट्र गांधारी संजय तथा कुंती अपना सब कुछ त्याग कर वन में चले गए समय बीतता गया और ऐसे ही 3 साल चले गए लेकिन एक दिन की सुबह धृतराष्ट्र जब गंगा में स्नान के लिए निकले और उसके पश्चात ही जंगल में आग लग जाती है आग को देखकर गांधारी कुंती तथा संजय धृतराष्ट्र से उसका हाल पूछने के लिए जाते हैं उसके बाद संजय उन सभी को जंगल से दूर चलने के लिए कहते हैं परंतु दुर्बलता के कारण धृतराष्ट्र चल नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने जंगल में ही रुकने का ने ने लिया अपने पति को देखकर गांधारी ने भी जंगल में रुकने का ने ने लिया और कुंती ने भी जंगल में रुकने का ने ने लिया और संजय अकेले ही हिमालय की तरफ चले गए और उन तीनों की जंगल में आग आग में झुलसने से मृत्यु हो गई
प्रिय मित्रों आशा करता हूं आपको धृतराष्ट्र की मृत्यु कैसे हुई और उसकी मृत्यु के 8 कारणों के बारे में पता चल ही गया होगा अगर आप ऐसे ही ज्ञानवर्धक और कथाओं कहानियों और आरती को पढ़ना चाहते हैं तो हमारी ब्लॉग पर विजिट करते रहिए