नमस्कार भक्तों जय श्री राधे भक्तों आज के इस पोस्ट में हम आपको ब्रिज धाम की रज की महिमा के बारे में बताएंगे कि कैसे एक व्यापारी सज्जन व्यक्ति को ब्रज रज से राधारमण के प्रेम की प्राप्ति हुई दोस्तों इस सत्य घटना को पूरा जानने के लिए इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें जय श्री राधे
एक बार की बात है वृंदावन की टटिया स्थान मैं श्री स्वामी भगवान दास जी महाराज वहां की महंत पीठ पर विराजमान थे 1 दिन प्रवचन के दौरान श्री स्वामी भगवान दास जी महाराज जी से एक मारवाड़ी व्यक्ति ने प्रश्न किया कि महाराज जी बृज प्रेममय धाम है तो ब्रिज में प्रेम स्थित कहां है हम तो बचपन से ब्रिज में आ रहे हैं पर हम तो सूखे के सूखे रह गए हैं अभी तक प्रेम रस का रसास्वादन नहीं हुआ है
महाराज जी हमारी जिज्ञासा है कि आप हमें बताएं कि ब्रज में प्रेम कहां है तो पूज्य स्वामी श्री भगवानदास जी ने बड़े ही सरल शब्दों में उस सज्जन व्यक्ति को जवाब दिया कि प्रेम तो इस रज में है क्या तुमने ब्रज की रज को प्रेम भाव से सेवन किया है तब उस सज्जन व्यक्ति ने महाराज जी से कहा कि महाराज जी आप कहते हैं तो मैं इस ब्रिज की रज में लोट लेता हूं और इस रज का सेवन कर लेता हूं तभी महाराज जी बोले कि तुमने जो कपड़े पहने हैं उनमें लौटने से कोई फायदा नहीं होगा
पहले यह सारे कपड़े उतारो और केवल लंगोट में रहकर इस प्रेम मई ब्रिज के रज में लोटो जिससे तुम्हें है राधा महारानी की कृपा प्राप्त होगी तब उस सज्जन ने जैसा महाराज जी ने बताया ठीक वैसा ही किया उन्होंने अपने सारे कपड़े उतारे और केवल लंगोट में ही टटिया स्थान की रज में लौटने लगे और राधा राधा पुकारने लगे जोही दो-तीन मिनट हुए
उस सज्जन व्यक्ति के एक साथ अश्रु कंप पुलक आदि अष्ट सात्विक भाव जग गए और उसे ठाकुर जी और राधा महारानी की झलक दिखाई देने लगी और इस अद्भुत प्रेम भाव की प्राप्ति करके वह सज्जन गदगद हो गए और जोर-जोर से राधे राधेश्याम राधेश्याम पुकारने लगे
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