अपराजिता स्त्रोत पढ़ने से क्या होता है?
नमस्कार मित्रों आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि अपराजिता स्त्रोत पढ़ने से क्या होता है मित्रों जैसा कि आप इस स्त्रोत्र के नाम से ही इसके कार्य के बारे में शायद जान चुके होंगे जैसा कि इस स्त्रोत्र का नाम है अपराजिता यानी कि कभी पराजित नहीं होने वाला
वैसा ही इस स्त्रोत्र का काम है अगर आप इस स्त्रोत्र को विधिवत बताए अनुसार करते हैं तो यह आपको कभी भी पराजित नहीं होने देगा इस स्त्रोत्र का मुख्य फायदा यह है कि यह स्त्रोत्र करने से आपको मुकदमा में सफलता और राजकीय कार्यों में अपराजित होने मैं यह आपकी मदद करता है यह स्त्रोत्र माता दुर्गा का ही है
उन्हीं का एक रूप है जिसका यह स्त्रोत्र है इस स्त्रोत्र में हम माता दुर्गा से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें सभी प्रकार के संकटों और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाए और वह हमें विजय प्राप्त करवाएं हमें हमारे दुश्मनों से तथा राजकीय मुकदमा और कार्यों में हमें विजय प्राप्त करवाएं
मित्रों इस स्त्रोत्र को अगर आप नियमित करते हैं तो मां दुर्गा आप पर बहुत ही प्रश्न होती है और वह आपको सभी प्रकार से अपराजित होने का वर देती है
अपराजिता स्तोत्र क्यों करना चाहिए ?
मित्रों अपराजिता स्तोत्र क्यों करना चाहिए इसका अगर हम आपको विस्तार से बताएं तो भगवान श्री राम ने रावण से युद्ध करने के 1 दिन पूर्व इस स्त्रोत्र का पाठ किया था ताकि वह युद्ध में विजय प्राप्त कर सके और सभी प्रकार के संकटों से मुक्त हो सके
इस स्त्रोत्र को इसलिए करना चाहिए क्योंकि अगर आप किसी महाभयंकर संकट से घिरे हुए हैं या आप किसी ऐसे राजकीय मुकदमें में फंसे हुए हैं जिससे आपको निजात नहीं मिल रही है आप उस मुकदमे में सफल नहीं हो रहे हैं तो यह स्त्रोत्र करने से आप उस मुकदमे में सफल हो सकते हैं
और आपके सभी प्रकार के मुकदमे और आपका मनचाहा राजकीय नौकरी आपको इस स्त्रोत्र को करने से मिल सकती है मित्रों अगर आप यह समझते हैं कि केवल आपको यह स्त्रोत्र करने से ही कोई भी राजकीय या सरकारी नौकरी मिल सकती है तो यह गलत बात है
आपको खूब मेहनत करनी है और उसके साथ-साथ आपको एक दो बार दिन में इस स्त्रोत का पाठ करना है जिससे कि माता की कृपा आप पर बनी रहे और आपको नौकरी में सफलता मिले और सरकारी नौकरी जो आप पाना चाहते हैं वह आप पा सके
मित्रों इस स्त्रोत्र का महत्व तभी है जब आप खुद से भी मेहनत करना चाहते हैं अगर आप केवल स्त्रोत्र को ही अपने सभी लक्ष्यों को पाने के लिए केवल उत्तरदाई बनाते हैं तो यह ठीक नहीं है आपको यह स्त्रोत्र तो करना ही है और इसके साथ साथ ही आपको जी जान से मेहनत भी करनी है जिससे कि आपको सफलता मिल सके
अपराजिता देवी कौन है ?
मित्रों अपराजिता देवी कौन है ? अपराजिता देवी माता दुर्गा का ही रूप है माता दुर्गा का एक रूप शक्ल सिद्धियों को प्रदान करने वाली अपराजिता देवी ही माता दुर्गा का रूप है अपराजिता देवी सभी प्रकार के कष्टों दुखों तथा संकटों से हमें अपराजित होने का वर प्रदान करती है
यानी कि हमें सभी प्रकार से सफल होने का वर देती है जब भगवान श्रीराम ने विजयादशमी में रावण पर विजय प्राप्त की थी तो उन्होंने सबसे पहले माता अपराजिता देवी का ही पूजन किया था जिससे कि वह इस महाभयंकर युद्ध में विजय प्राप्त कर सके
किसी भी प्रकार के युद्ध संकट और यात्रा में माता अपराजिता का ही अधिकार होता है अगर हमें उन में सफलता प्राप्त करनी है तो माता अपराजिता का ही हमें आशीर्वाद चाहिए जिससे कि हम उनमें सफल हो सके माता अपराजिता मां दुर्गा का ही वह अवतार है जो अपने भक्तों को संकटों से बचाती है ।
अपराजिता मंत्र क्या है ?
मित्रों अपराजिता मंत्र क्या है और इसका पाठ कैसे करना चाहिए इसके बारे में हम आपको अभी बताएंगे अपराजिता मंत्र माता अपराजिता का आवाहन मंत्र है जिससे कि हम माता को बुलाते हैं और उनसे अपने दुखों और कष्टों को दूर करने के लिए प्रार्थना करते हैं
जो कोई भी मनुष्य अपने कष्टों को दूर करना चाहता है वह अगर इस मंत्र का जाप सुबह और शाम को आरती के समय 11 बार करें तो उसके कष्ट बहुत ही जल्दी खत्म हो जाते हैं
इस मंत्र को करने के लिए आपको ओम अपराजिताय नमः मंत्र का 11 बार पाठ करना चाहिए और उसके बाद में देवी सुक्तम देवी कवच और अर्गला स्तोत्र का पाठ करें और पूजा के अंत में मां शक्ति की आरती जरूर करें
आप यह कार्य प्रतिदिन सुबह और शाम आरती के समय जरूर करें जिससे की माता अपराजिता की कृपा आप पर जल्द से जल्द बन सके
अपराजिता स्तोत्र | Aparajita Stotram With Lyrics
|| अपराजिता स्तोत्र ||
विनियोगः ॐ अस्या: वैष्णव्याः पराया: अजिताया: महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्कण्डेया ऋषयः | गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहति छन्दांसि | लक्ष्मी नृसिंहो देवता | ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजं हुं शक्तिः | सकलकामना सिद्ध्यर्थं अपराजित विद्यामन्त्र पाठे
विनियोगः
ॐ अस्या: वैष्ण्व्या: पराया: अजिताया: महाविद्ध्या: वामदेव-ब्रहस्पतमार्कणडेया ॠषयः।गाय्त्रुश्धिगानुश्ठुब्ब्रेहती छंदासी। लक्ष्मी नृसिंहो देवता। ॐ क्लीं श्रीं हृीं बीजं हुं शक्तिः सकल्कामना सिद्ध्यर्थ अपराजित विद्द्य्मंत्र पाठे विनियोग:। (जल भूमि पर छोड़ दे)
अपराजिता देवी ध्यान
ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजंगाभरणानिव्तं ।
शुद्ध्स्फटीकंसकाशां चन्द्र्कोटिनिभाननां ।। १।।
शड़्खचक्रधरां देवीं वैष्णवीं अपराजितं ।
बालेंदुशेख्रां देवीं वर्दाभाय्दायिनीं ।। २।।
नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कंडेय महातपा: ।। ३।।
श्री मार्कंडेय उवाच
शृणुष्वं मुनय: सर्वे सर्व्कामार्थ्सिद्धिदाम् ।
असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीं अपराजितम्। । ४। ।
ॐ नमो नारायणाय, नमो भगवते वासुदेवाय,
नमोऽस्त्वनंताय सह्स्त्रिशीर्षायणे, क्षिरोदार्णवशायिने,
शेषभोगपययड़्काय,गरूड़वाहनाय, अमोघाय अजाय अजिताय पीतवाससे,
ॐ वासुदेव सड़्कर्षण प्रघुम्न, अनिरुद्ध, हयग्रीव, मत्स्य, कुर्म, वाराह,
नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर,राम राम राम ।
वरद, वरद, वरदो भव, नमोस्तुते, नमोस्तुते स्वाहा,
ॐ असुर- दैत्य- यक्ष- राक्षस- भूत-प्रेत- पिशाच- कुष्मांड-
सिद्ध- योगिनी- डाकिनी- शाकिनी- स्क्न्गद्घान,
उपग्रहानक्षत्रग्रहांश्रचान्या हन हन पच पच मथ मथ
विध्वंस्य विध्वंस्य विद्रावय विद्रावय चूणय चूणय शंखेंन
चक्रेण वज्रेण शुलेंन गदया मुसलेन हलेंन भास्मिकुरु कुरु स्वाहा ।
ॐ सहस्त्र्बाहो सह्स्त्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अजित, अमित, अपराजित, अप्रतिहत,सहत्स्र्नेत्र, ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, विश्वरूप, बहुरूप, मधुसुदन,महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्द्नाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषिकेश, केशव, सर्वसुरोत्सादन, सर्वभूतवशड़्कर, सर्वदु:स्वप्न्प्रभेदन, सर्वयन्त्रप्रभ्जज्न, सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर,सर्व्बन्धविमोक्षण, सर्वाहितप्रमर्दन, सर्वज्वरप्रणाशन, सर्वग्रहनिवारण, सर्वपापप्रशमन, जनार्दंन, नमोस्तुते स्वाहा ।
ॐ विष्णोरियमानुपप्रोकता सर्वकामफलप्रदा ।
सर्वसौभाग्यजननी सर्वभितिविनाशनी । । ५। ।
सवैश्र्च पठितां सिद्धैविष्णो: परम्वाल्लभा ।
नानया सदृशं किन्चिदुष्टानां नाशनं परं। । ६। ।
विद्द्या रहस्या कथिता वैष्ण्व्येशापराजिता ।
पठनीया प्रशस्ता वा साक्शात्स्त्वगुणाश्रया । । ७। ।
ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजं ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये । । ८। ।
अथात: संप्रवक्ष्यामी हृाभ्यामपराजितम् ।
यथाशक्तिमार्मकी वत्स रजोगुणमयी मता । । ९। ।
सर्वसत्वमयी साक्शात्सर्वमन्त्रमयी च या ।
या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्मणि योजिता ।
सर्वकामदुधा वत्स शृणुश्वैतां ब्रवीमिते। । १०। ।
य इमां पराजितां परम्वैष्ण्वीं प्रतिहतां
पठति सिद्धां स्मरति सिद्धां महाविद्द्यां
जपति पठति श्रृणोति स्मरति धारयति किर्तयती वा
न तस्याग्निवायुवज्रोपलाश्निवर्शभयं
न समुद्रभयं न ग्रह्भयं न चौरभयं
न शत्रुभयं न शापभयं वा भवेत् ।
क्वाचिद्रत्र्यधकारस्त्रीराजकुलविद्वेषी
विषगरगरदवशीकरण विद्वेशोच्चाटनवध बंधंभयं वा न भवेत्।
एतैमर्न्त्रैरूदाहृातै: सिद्धै: संसिद्धपूजितै:। ॐ नमोस्तुते ।
अभये, अनघे, अजिते, अमिते, अमृते, अपरे, अपराजिते, पठत सिद्धे, जयति सिद्धे, स्मरति सिद्धे, एकोनाशितितमे, एकाकिनी, निश्चेतसी, सुद्र्मे, सुगन्धे, एकान्न्शे, उमे, ध्रुवे, अरुंधती, गायत्री, सावित्री, जातवेदसी, मास्तोके, सरस्वती,धरणी, धारणी, सौदामिनी, अदीति, दिति, विनते, गौरी ,गांधारी, मातंगी, कृष्णे , यशोदे, सत्यवादिनी, ब्र्म्हावादिनी, काली ,कपालिनी, कराल्नेत्र, भद्रे, निद्रे, सत्योप्याचकरि, स्थाल्गंत, जल्गंत,अन्त्रख्सिगतं वा माँ रक्षसर्वोप्द्रवेभ्य: स्वाहा।
यस्या: प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि ।
भ्रियते बालको यस्या: काक्बन्ध्या च या भवेत् । । ११। ।
धारयेघा इमां विधामेतैदोषैन लिप्यते।
गर्भिणी जीवव्त्सा स्यात्पुत्रिणी स्यान्न संशय: । । १२। ।
भूर्जपत्रे त्विमां विद्धां लिखित्वा गंध्चंदनैः ।
एतैदोषैन लिप्यते सुभगा पुत्रिणी भवेत् । । १३। ।
रणे राजकुले दुते नित्यं तस्य जयो भवेत् ।
शस्त्रं वारयते हृोषा समरे काडंदारूणे । । १४। ।
गुल्मशुलाक्शिरोगाणां न नाशिनी सर्वदेहिनाम् । । १५। ।
इत्येषा कथिता विद्द्या अभयाख्या अपराजिता ।
एतस्या: स्म्रितिमात्रेंण भयं क्वापि न जायते । । १६। ।
नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्करा: ।
न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रव: । । १७। ।
यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहा: ।
अग्नेभ्र्यं न वाताच्च न स्मुद्रान्न वै विषात् । । १८। ।
कामणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च ।
उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा । । १९। ।
न किन्चितप्रभवेत्त्र यत्रैषा वर्ततेऽभया ।
पठेद वा यदि वा चित्रे पुस्तके वा मुखेऽथवा । । २०। ।
हृदि वा द्वार्देशे व वर्तते हृाभय: पुमान् ।
ह्रदय विन्यसेदेतां ध्यायदेवीं चतुर्भुजां । । २१। ।
रक्त्माल्याम्बरधरां पद्दरागसम्प्रभां ।
पाशाकुशाभयवरैरलंकृतसुविग्रहां । । २२। ।
साध्केभ्य: प्र्यछ्न्तीं मंत्रवर्णामृतान्यापि ।
नात: परतरं किन्च्चिद्वाशिकरणमनुतम्ं। । २३। ।
रक्षणं पावनं चापि नात्र कार्या विचारणा ।
प्रात: कुमारिका: पूज्या: खाद्दैराभरणैरपि ।
तदिदं वाचनीयं स्यातत्प्रिया प्रियते तू मां। । २४। ।
ॐ अथात: सम्प्रक्ष्यामी विद्दामपी महाबलां ।
सर्व्दुष्टप्रश्मनी सर्वशत्रुक्षयड़्करीं । । २५। ।
दारिद्र्य्दुखशमनीं दुभार्ग्यव्याधिनाशिनिं ।
भूतप्रेतपिशाचानां यक्श्गंध्वार्क्षसां । । २६। ।
डाकिनी शाकिनी स्कन्द कुष्मांडनां च नाशिनिं ।
महारौदिं महाशक्तिं सघ: प्रत्ययकारिणीं । । २७। ।
गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वंपार्वतीपते: ।
तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः श्रृणु । । २८। ।
एकाहिृकं द्वहिकं च चातुर्थिकर्ध्मासिकं ।
द्वैमासिकं त्रैमासिकं तथा चातुर्थ्मासिकं । । २९। ।
पाँचमासिक षाड्मासिकं वातिक पैत्तिक्ज्वरं ।
श्रैष्मिकं सानिपातिकं तथैव सततज्वरं । । ३०। ।
मौहूर्तिकं पैत्तिकं शीतज्वरं विषमज्वरं ।
द्वहिंकं त्रयहिन्कं चैव ज्वर्मेकाहिकं तथा ।
क्षिप्रं नाशयेते नित्यं स्मरणाद्पराजिता। । ३१। ।
ॐ हीं हन हन कालि शर शर गौरि धम धम
विद्धे आले ताले माले गन्थे बन्धे पच पच विद्दे
नाशाय नाशाय पापं हर हर संहारय वा दु:स्वप्नविनाशनी कमलस्थिते
विनायकमात: रजनि संध्ये दुन्दुभिनादे मानसवेगे शड़्खिनी चक्रिणी
गदिनी वज्रिणी शूलिनी अपमृत्युविनाशिनी विश्रेश्वरी द्रविणी
द्राविणी केश्वद्यिते पशुपतिसहिते दुन्दुभिदमनी दुम्मदमनी शबरि
किराती मातंगी ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु ।
ये मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान सर्वान दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय गोपय गोपय पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय ब्रम्हाणी ब्रम्हाणी माहेश्वरी कौमारि वाराहि नारसिंही एंद्री चामुंडे महालक्ष्मी वैनायिकी औपेंद्री आग्नेयी चंडी नैॠति वायव्ये सौम्ये ऐशानि ऊध्र्व्मधोरक्ष प्रचंद्विद्दे इन्द्रोपेन्द्रभगिनि ।
ॐ नमो देवी जये विजये शान्ति स्वस्ति तुष्ठी पुष्ठी विवर्द्धिनी कामांकुशे कामदुद्दे सर्वकामवर्प्रदे सर्वभूतेषु माँ प्रियं कुरु कुरु स्वाहा ।
आकर्षणी आवेशनि ज्वालामालिनी रमणी रामणि धरणी धारणी तपनि तापिनी मदनी मादिनी शोषणी सम्मोहिनी।
नीलपताके महानीले महागौरि महाश्रिये ।
महाचान्द्री महासौरी महामायुरी आदित्यरश्मि जाहृवि ।
यमघंटे किणी किणी चिन्तामणि ।
सुगन्धे सुर्भे सुरासुरोत्प्त्रे सर्वकाम्दुद्दे ।
यद्द्था मनिषीतं कार्यं तन्मम सिद्धतु स्वाहा ।
ॐ स्वाहा । ॐ भू: स्वाहा । ॐ भुव: स्वाहा । ॐ स्व: स्वाहा ।
ॐ मह: स्वाहा । ॐ जन: स्वाहा । ॐ तप: स्वाहा । ॐ सत्यं स्वाहा । ॐ भूभुर्व: स्वाहा ।
यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छ्तु स्वाहेत्यों ।
अमोघैषा महाविद्दा वैष्णवी चापराजिता । । ३२। ।
स्वयं विश्नुप्रणीता च सिद्धेयं पाठत: सदा ।
एषा महाबला नाम कथिता तेऽपराजित । । ३३। ।
नानया सदृशी रक्षा त्रिषु लोकेषु विद्दते ।
तमोगुणमयी साक्षद्रोद्री शक्तिरियं मता । । ३४। ।
कृतान्तोऽपि यतोभीत: पाद्मुले व्यवस्थित: ।
मूलाधारे न्यसेदेतां रात्रावेन च संस्मरेत । । ३५। ।
नीलजीतमूतसंड़्काशां तडित्कपिलकेशिकाम् ।
उद्ददादित्यसंकाशां नेत्रत्रयविराजिताम् । । ३६। ।
शक्तिं त्रिशूलं शड़्खं चपानपात्रं च बिभ्रतीं ।
व्याघ्र्चार्म्परिधानां किड़्किणीजालमंडितं । । ३७। ।
धावंतीं गगंस्यांत: पादुकाहितपादकां ।
दंष्टाकरालवदनां व्यालकुण्डलभूषितां । । ३८। ।
व्यात्वक्त्रां ललजिहृां भुकुटिकुटिलालकां ।
स्वभक्तद्वेषिणां रक्तं पिबन्तीं पान्पात्रत: । । ३९। ।
सप्तधातून शोषयन्तीं क्रूरदृष्टया विलोकनात् ।
त्रिशुलेन च तज्जिहृां कीलयंतीं मुहुमुर्हु: । । ४०। ।
पाशेन बद्धा तं साधमानवंतीं तन्दिके ।
अर्द्धरात्रस्य समये देवीं ध्यायेंमहबलां । । ४१। ।
यस्य यस्य वदेन्नाम जपेन्मंत्रं निशांतके ।
तस्य तस्य तथावस्थां कुरुते सापियोगिनी । । ४२। ।
ॐ बले महाबले असिद्धसाधनी स्वाहेति ।
अमोघां पठति सिद्धां श्रीवैष्णवीं । । ४३। ।
श्रीमद्पाराजिताविद्दां ध्यायते ।
दु:स्वप्ने दुरारिष्टे च दुर्निमिते तथैव च ।
व्यवहारे भवेत्सिद्धि: पठेद्विघ्नोपशान्त्ये । । ४४। ।
यदत्र पाठे जगदम्बिके मया, विसर्गबिन्द्धऽक्षरहीमीड़ितं ।
तदस्तु सम्पूर्णतमं प्रयान्तु मे, सड़्कल्पसिद्धिस्तु सदैव जायतां । । ४५। ।
ॐ तव तत्वं न जानामि किदृशासी महेश्वरी ।
यादृशासी महादेवी ताद्रिशायै नमो नम: । । ४६। ।
अपराजिता स्तोत्रं | Aparajita Stotram With Lyrics | Most Powerful Durga Mantra | Chants Of Devi
- हरिनाम कीर्तन निर्देशिका – सम्पूर्ण हिन्दी अनुवाद सहित
- अन्नपूर्णा स्तोत्र – नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौंदर्यरत्नाकरी
- कनकधारा स्तोत्र – अंग हरे: पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृंगांगनेव मुकुलाभरणं तमालम
- आदित्य-हृदय स्तोत्र – ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्
- श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र – प्रणम्य शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम
- श्री हित यमुनाष्टक श्री हित हरिवंश महाप्रभु रचित हिन्दी अनुवाद सहित