अन्नपूर्णा स्तोत्र संस्कृत
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौंदर्यरत्नाकरी।
निर्धूताखिल-घोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।
प्रालेयाचल-वंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपुर्णेश्वरी।।
नानारत्न-विचित्र-भूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी।
मुक्ताहार-विलम्बमान विलसद्वक्षोज-कुम्भान्तरी।
काश्मीराऽगुरुवासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्माऽर्थनिष्ठाकरी।
चन्द्रार्कानल-भासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी।
सर्वैश्वर्य-समस्त वांछितकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
कैलासाचल-कन्दरालयकरी गौरी उमा शंकरी।
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओंकारबीजाक्षरी।
मोक्षद्वार-कपाट-पाटनकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
दृश्याऽदृश्य-प्रभूतवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी।
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपांकुरी।
श्री विश्वेशमन प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
उर्वी सर्वजनेश्वरी भगवती माताऽन्नपूर्णेश्वरी।
वेणीनील-समान-कुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी।
सर्वानन्दकरी दृशां शुभकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
आदिक्षान्त-समस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी।
काश्मीरा त्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्यांकुरा शर्वरी।
कामाकांक्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुंदरी।
वामस्वादु पयोधर-प्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी।
भक्ताऽभीष्टकरी दशाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
चर्न्द्रार्कानल कोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी।
चन्द्रार्काग्नि समान-कुन्तलहरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी।
माला पुस्तक-पाश-सांगकुशधरी काशीपुराधीश्वरी।
शिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी।
साक्षान्मोक्षरी सदा शिवंकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे !
ज्ञान वैराग्य-सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहिं च पार्वति।।
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् II
अन्नपूर्णा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौंदर्यरत्नाकरी।
निर्धूताखिल-घोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।
प्रालेयाचल-वंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपुर्णेश्वरी।।
अन्नपूर्णा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित :- आप नित्य आनन्द प्रदान करनेवाली हैं, वर तथा अभय देनेवाली हैं, सौन्दर्यरूपी रत्नों की खान हैं, भक्तों के सम्पूर्ण पापों को नष्ट करके उन्हें पवित्र कर देनेवाली हैं, साक्षात् माहेश्वरी के रूप में प्रतिष्ठित हैं, [पार्वती के रूपमें जन्म लेकर] आपने हिमालय वंश को पावन कर दिया है, आप काशीपुरी की अधीश्वरी (स्वामिनी) हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।१।।
नानारत्न-विचित्र-भूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी।
मुक्ताहार-विलम्बमान विलसद्वक्षोज-कुम्भान्तरी।
काश्मीराऽगुरुवासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अन्नपूर्णा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित :- आप अनेकविध रत्नों के विचित्र आभूषण धारण करनेवाली हैं, आप स्वर्ण-वस्त्रों से शोभा पानेवाली हैं, आपके वक्ष स्थल का मध्यभाग मुक्ताहार से सुशोभित हो रहा है, आपके श्री अंग केशर और अगर से सुवासित हैं, आप काशीपुर की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।२।।
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्माऽर्थनिष्ठाकरी।
चन्द्रार्कानल-भासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी।
सर्वैश्वर्य-समस्त वांछितकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अन्नपूर्णा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित :- आप [योगीजन को] योग का आनन्द प्रदान करती हैं, शत्रुओं का नाश करती हैं, धर्म और अर्थ के लिये लोगों में निष्ठा उत्पन्न करती हैं; सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि की प्रभाव-तरंगों के समान कान्तिवाली हैं, तीनों लोकों की रक्षा करती हैं। अपने भक्तों को सभी प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करती हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण करती हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।३।।
कैलासाचल-कन्दरालयकरी गौरी उमा शंकरी।
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओंकारबीजाक्षरी।
मोक्षद्वार-कपाट-पाटनकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अन्नपूर्णा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित :- आपने कैलास पर्वत की गुफा को अपना निवास स्थल बना रखा है, आप गौरी, उमा, शंकरी तथा कौमारी के रूप में प्रतिष्ठित हैं, आप वेदार्थ तत्त्व का अवबोध करानेवाली हैं, आप ‘ओंकार’ बीजाक्षर स्वरूपिणी हैं, आप मोक्षमार्गक कपाट का उद्घाटन करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।४।।
दृश्याऽदृश्य-प्रभूतवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी।
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपांकुरी।
श्री विश्वेशमन प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अन्नपूर्णा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित :- आप दृश्य तथा अदृश्य रूप अनेकविध ऐश्वर्यरूपी वाहनों पर आसनस्थ होनेवाली हैं, आप अनन्त ब्रह्माण्ड को अपने उदररूपी पात्र में धारण करनेवाली हैं, माया-प्रपंच के (कारणभूत अज्ञान) सूत्र का भेदन करनेवाली हैं, आप विज्ञान (प्रत्यक्ष अनुभूति)-रूपी दीपक की शिखा हैं, आप भगवान विश्वनाथ मन को प्रसन्न रखनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता है, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे शिक्षा प्रदान करें।।५।।
उर्वी सर्वजनेश्वरी भगवती माताऽन्नपूर्णेश्वरी।
वेणीनील-समान-कुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी।
सर्वानन्दकरी दृशां शुभकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
हिन्दी अनुवाद :- आप पृथ्वी तल पर स्थित सभी प्राणियों की ईश्वरी (स्वामिनी) हैं, आप ऐश्वर्यशालिनी हैं, सभी जीवों में मातृभाव से विराजती हैं, अन्न से भण्डार को परिपूर्ण रखनेवाली देवी हैं, आप नील वर्ण की वेणी के समान लहराते केश-पाशवाली हैं, आप निरन्तर अन्न-दानमें लगी रहती हैं। समस्त प्राणियोंको आनन्द प्रदान करनेवाली हैं। सर्वदा भक्तजनों का मंगल करनेवाली हैं, आप काशीपुरीकी अधीश्वरी हैं, अपना आश्रय देनेवाले हैं, आप [समस्त प्राणियों के] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।६।।
आदिक्षान्त-समस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी।
काश्मीरा त्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्यांकुरा शर्वरी।
कामाकांक्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
हिन्दी अनुवाद :- आप ‘अ’ से ‘क्ष’ पर्यन्त समस्त वर्णमाला व्याप्त हैं, आप भगवान शिवके तीनों भावों (सत्त्व, रज, तम)-को प्रादुर्भूत करनेवाली आप केसर के समान आभावाली हैं, आप स्वर्गीय, पातालगंगा तथा भागीरथी-इन तीन जल-राशियों स्वामिनी हैं, आप गंगा, यमुना तथा सरस्वती-इन तीनों नदियों की लहरों के रूप में विद्यमान हैं। आप विभिन्न रूपों में नित्य अभिव्यक्त होनेवाली हैं, आप रात्रिस्वरूपा हैं, आप अभिलाषी भक्त जनों की कामनाएँ पूर्ण करनेवाली हैं, लोगों का अभ्युदय करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपाका आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।७।।
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुंदरी।
वामस्वादु पयोधर-प्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी।
भक्ताऽभीष्टकरी दशाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
हिन्दी अनुवाद :- आप सभी प्रकार के अद्भुत रत्नाभूषणों से सजी हुई देवी के रूप में शोभा पाती हैं, आप दक्ष की सुन्दर पुत्री हैं, आप माता के रूप में अपने वाम तथा स्वादमय पयोधरसे [भक्त शिशुओंका] प्रिय सम्पादन करनेवाली हैं, आप सौभाग्य की माहेश्वरी हैं, आप भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करनेवाली और सदा उनका कल्याण करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपाका आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।८।।
चर्न्द्रार्कानल कोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी।
चन्द्रार्काग्नि समान-कुन्तलहरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी।
माला पुस्तक-पाश-सांगकुशधरी काशीपुराधीश्वरी।
शिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
हिन्दी अनुवाद :- आप कोटि-कोटि चन्द्र-सूर्य-अग्नि के समान जाज्वल्यमान प्रतीत होती हैं, आप चन्द्र किरणों के समान [शीतल] तथा बिम्बाफल के समान रक्त-वर्णक अधरोष्ठवाली हैं, चन्द्र-सूर्य तथा अग्नि के समान प्रकाशमान केश धारण करनेवाली हैं, आप चन्द्रमा तथा सूर्य के समान देदीप्यमान वर्णवाली ईश्वरी हैं, आपने अपने हाथों में] माला, पुस्तक, पाश तथा अंकुश धारण कर रखा है, आप काशीपुरीकी अधीश्वरी हैं, अपनी कृपाका आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं; आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।९।।
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी।
साक्षान्मोक्षरी सदा शिवंकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
हिन्दी अनुवाद :- आप घोर संकट की स्थिति में अपने भक्तों की रक्षा करती है, भक्तों को महान् अभय प्रदान करती हैं। आप मातृस्वरूपा हैं, आप कृपासमुद्र हैं, आप साक्षात् मोक्ष प्रदान करनेवाली हैं, आप सदा कल्याण करनेवाली हैं, आप भगवान् विश्वनाथका ऐश्वर्य धारण करनेवाली है यज्ञ का विध्वंस करके आप दक्ष को रुलानेवाली हैं, आप रोग से मुक्त करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियोंकी] माता हैं, आप भवगतीअन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।१०।।
अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे !
ज्ञान वैराग्य-सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहिं च पार्वति।।
हिन्दी अनुवाद :- सारे वैभवों से सदा परिपूर्ण रहनेवाली तथा भगवान् शंकर की प्राणप्रिया हे अन्नपूर्णे! हे पार्वती!! ज्ञान तथा वैराग्यकी सिद्धिके लिये मुझे भिक्षा प्रदान करें।।११।।
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् II
हिन्दी अनुवाद :- भगवती पार्वती मेरी माता है, भगवान् महेश्वर मेरे पिता हैं। सभी शिवभक्त मेरे बन्धु-बान्धव हैं और तीनों लोक मेरा अपना ही देश है [यह भावना सदा मेरे मन में बनी रहे]।।१२।।
कब और कैसे करें अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ विधि
मां अन्नपूर्णा स्तोत्र पाठ विधि विधान को जानने के लिए हमने नीचे आपके लिए कुछ पॉइंट बनाए हैं इन पॉइंट को आप ध्यान में रखकर मां अन्नपूर्णा का स्त्रोत्र पाठ कर सकते हैं और मित्रों यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि मां अन्नपूर्णा आपके घर से दरिद्रता को दूर करती है तो नीचे जो भी पॉइंट बताए गए हैं उनका खासकर ध्यान रखें
- अन्नपूर्णा स्तोत्र पाठ करने के लिए सबसे पहले आपको सुबह सुबह ब्रह्म मुहूर्त यानी कि आपको सुबह 3:30 से 5:00 के समय में उठना होगा और उठने के बाद में आप दैनिक कार्य करके स्नानादि कर ले और स्वच्छ धुले हुए या नए वस्त्र धारण कर लें
- उसके बाद आप नित्य पूजा पाठ जो करते हैं वह अपने घर के मंदिर या अपने व्यवसाय के मंदिर पर कर ले उसके बाद में मां अन्नपूर्णा की एक तस्वीर ले या अगर आपके पास माता अन्नपूर्णा की मूर्ति है तो बहुत ही बढ़िया होगा उनको मंदिर के सामने रख ले और माता की तस्वीर या मूर्ति पर तिलक मौली चावल इत्यादि चढ़ा दें
- फिर अन्नपूर्णा माता को घी का दीपक करें अगरबत्ती या धूप अर्पित करें और इसके साथ साथ आप अन्न भी अर्पित करें अन्न में आप चावल गेहूं जैसा कोई भी धान उपयोग में ले सकते हैं माता के सामने एक कटोरी भर अन्न अर्पण करें और फिर माता को प्रणाम करके अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ करें
- इस स्तोत्र का पाठ आप नित्य सुबह और शाम को कर सकते हैं पर ध्यान में रहे जो पॉइंट आपको बताए गए हैं उनको ध्यान में रखकर ही स्तोत्र का पाठ करें और कम से कम एक बार और ज्यादा से ज्यादा 7 बार स्तोत्र का पाठ जरूर करें ताकि माता आप से जल्द से जल्द प्रसन्न हो और आपके मन मांगा वर को आपको दे
- मित्रों इस बात का खासकर ध्यान रखें जब भी आप अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ करते हो तो उन दिनों में आप नशा मदिरा मांस इत्यादि का सेवन बिल्कुल भी ना करें क्योंकि इन सभी का सेवन करके अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ करना पूर्ण रूप से वर्जित है अगर आप इनका सेवन करते हो और फिर पाठ करते हो तो यह आपके लिए सही नहीं होगा इसलिए मेरा कहना यह है कि आप स्त्रोत्र का जब भी पाठ करें तो इनसे दूर ही रहें
अन्नपूर्णा स्त्रोत के लाभ
अन्नपूर्णा स्तोत्र के लाभ वैसे तो बहुत सारे हैं जो आपको बताते बताते सुबह से शाम हो जाएगी परंतु मित्रों आप यह जान लो कि माता अन्नपूर्णा अपने भक्तों को अपने बालक की तरह रखती है जैसे एक मां अपने बच्चे की सभी समस्त प्रकार की समस्याओं से उसकी सहायता करती है
सभी रोग कष्ट दुख पीड़ा दर्द को निवारण करती है वैसी ही है माता अन्नपूर्णा यह अपने भक्तों को अनेक कष्टों से बचाती है और यह अपने भक्तों के जीवन में सुख समृद्धि और खुशियों की भरमार कर देती है माता अन्नपूर्णा की जो भी भक्त उपासना करते हैं
उनके घरों में कभी भी धन की कमी नहीं आती है तथा उनके जो माता अन्नपूर्णा की उपासना करता है उसका तो स्वास्थ्य ठीक ही रहता है साथ-साथ उसके परिजन मित्र बंधु बांधव का भी स्वास्थ्य माता की कृपा से स्वस्थ रहता है और अगर कोई शत्रु आदि उनकी समस्या हो तो माता उसका भी निवारण करती है
कहने का तात्पर्य यह है कि मां अपने भक्तों को अपने बच्चों की तरह रखती है यानी कि मां अपने भक्तों की सभी प्रकार से मदद करती है मैं आपको अपने मुख से माता अन्नपूर्णा स्तोत्र के लाभ नहीं गीनवा सकता मेरा कहना इतना ही है कि आप माता के पैर पकड़ ले और अन्नपूर्णा माता को प्रार्थना करें कि वह आपको सभी कष्टों से मुक्ति दिलाए
अगर आप माता अन्नपूर्णा का स्त्रोत्र प्रेम भाव से सरल हृदय से पाठ करते हैं तो वह आपको जल्द ही सभी कष्टों से निवारण दिलाती है
शंकराचार्य द्वारा माँ अन्नपूर्णा पूजन एवं स्त्रोत रचना
एक बार की बात है जब आदि गुरु शंकराचार्य जी समस्त विश्व का भ्रमण करते हुए काशी पहुंचे तो उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य इतना बिगड़ गया कि वह चल फिर भी नहीं सकते थे
तो फिर वह एक स्थान पर रहकर विश्राम करने लगे कुछ दिन वह उस स्थान पर विश्राम कर रहे थे की माता अन्नपूर्णा ने अपना एक चमत्कार दिखाया उन्होंने एक महिला का भेष धारण करके आदि गुरु शंकराचार्य जी के सामने आए और वह बोले की आप मेरा इस पानी से भरे घड़े को उठाने में मदद करें
तब शंकराचार्य जी बड़े ही विनम्र भाव से बोले कि हे देवी मैं अस्वस्थ हूं मुझसे खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा है मैं आपकी घड़ा उठाने में मदद नहीं कर सकता मेरे इस शरीर में बिल्कुल भी शक्ति नहीं बची है
तब उस महिला के भेष में माता अन्नपूर्णा ने आदि गुरु शंकराचार्य जी को कहा कि हे योगी आप अगर शक्ति की उपासना करते तो आपको अवश्य ही शक्ति की प्राप्ति होती और यह कहकर वह देवी अंतर्ध्यान हो गई
तब आदि गुरु शंकराचार्य जी को बोध हुआ और फिर उन्होंने माता अन्नपूर्णा स्तोत्र की रचना की ओर पाठ किया माता अन्नपूर्णा स्त्रोत्र के गाने से आदि गुरु शंकराचार्य जी का शरीर फिर से स्वस्थ हो गया
अन्नपूर्णा स्त्रोत PDF
देवी अन्नपूर्णा का पवित्र स्तोत्र | नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी | अन्नपूर्णा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
FAQ …?
अन्नपूर्णा की पूजा कैसे करें?
मां अन्नपूर्णा के पूजन करने के लिए हमने आपको ऊपर मुख्य बिंदुओं के तौर पर विस्तार में बताया है फिर भी अगर आप जानना चाहते हैं तो आपको सुबह स्नान करके स्वच्छ कपड़े धारण करना है फिर माता अन्नपूर्णा के मूर्ति या फोटो के सामने मां अन्नपूर्णा को घी का दीपक जलाकर उनके स्त्रोत्र का पाठ करना है
अन्नपूर्णा की पूजा क्यों की जाती है?
मां अन्नपूर्णा की पूजा इसलिए की जाती क्योंकि माता आपके जीवन से दुख दरिद्रता शत्रुता का नाश करती है तथा आपके जीवन को सुख समृद्धि तथा आनंददायक बनाती है मां अन्नपूर्णा अपने भक्तों को अपने बच्चों की तरह दुलार करती है तथा उन्हें समस्त सुखों का प्रदान करती है
मां अन्नपूर्णा को कैसे प्रसन्न करें?
मां अन्नपूर्णा को प्रसन्न करना बहुत ही आसान है अगर आप नित्य सुबह स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर मां अन्नपूर्णा के स्त्रोत का पाठ करते हैं तथा शुद्ध मन से मां से प्रार्थना करते हैं तो मैं आपसे बहुत ही जल्द प्रसन्न हो जाती है और आपका मनचाहा वर आपको दे देती है
अन्नपूर्णा क्या होता है?
अन्नपूर्णा का अर्थ होता है अन्य यानी कि धान की पूर्ति करने वाली मां धान की देवी यानी कि अन्य की देवी है जो कि मनुष्य की भूख उस मिटाने के लिए उसे अन्य को प्रदान करती है तथा उसे धन-धान्य प्रदान करके सुखी जीवन देती है
- कनकधारा स्तोत्र – अंग हरे: पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृंगांगनेव मुकुलाभरणं तमालम
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