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शिमला में महाभारत काल की देवी मंदिर से जुड़ी भागने वाले घड़े की सच्ची कहानी

नमस्कार मित्रों आज के इस आर्टिकल में हम आपको एक बेहद ही सच्ची घटना के बारे में बताएंगे शिमला में महाभारत काल की देवी मंदिर से जुड़ी भागने वाले घड़े की सच्ची कहानी दोस्तों आज की यह सच्ची कहानी महाभारत कालीन युग से चली आ रही है और इसकी मान्यता आज भी है।

यह कहानी शिमला में स्थित एक देवी के मंदिर की है जिसमें रखा कलश भाग जाता है मित्रों आज हम आपको इस कहानी के बारे में बताएंगे और क्या चमत्कार है उस कलश में जिसकी वजह से उसको जंजीरों से बांधकर रखना पड़ता है। इसके बारे में बताएंगे

मित्रों आपसे विनम्र अनुरोध है कि आपको यह आर्टिकल अपने दोस्त और परिवार के साथ है अवश्य शेयर करना है ताकि उन्हें भी इस सच्ची घटना के बारे में पता चल सके । शिमला में माता हाटेश्वरी का एक बेहद ही प्राचीन मंदिर है जो कि शिमला से लगभग 110 किलोमीटर दूरी पर स्थित है इस मंदिर का निर्माण लगभग 700 से 800 वर्ष पहले हुआ था यह वहां के सामान्य जन नागरिकों और मंदिर के पुजारी के द्वारा कहा जाता है।

माता हाटेश्वरी का मंदिर विशकुलती, राईनाला और पब्बर नदी के संगम पर सोनपुरी पहाड़ी पर स्थित है यह मंदिर पहले नागर शैली में बना हुआ था परंतु उसके बाद में श्रद्धालुओं द्वारा इसकी मरम्मत करने के कारण इसको पहाड़ी शैली के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है।

माता हाटेश्वरी मंदिर की क्या मान्यता है ?

इस मंदिर की मान्यता के अनुसार यह माना जाता है कि कई 100 साल पहले दो सगी बहनों लोगों के दुख दर्द का निवारण करने के लिए और उन्हें सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए बहुत ही छोटी अवस्था में सन्यास ग्रहण कर लिया था और उन दो सगी बहनों ने गांव-गांव जाकर लोगों के दुख दर्द निवारण के लिए उपाय खोजे उनमें से एक बहन हाटकोटी के गांव में पहुंची

वह गांव वालों की मदद करने के लिए उनके दुख और समस्याओं को सुनने लगे और इसके निवारण के लिए वह उस गांव के एक खेत में जाकर ध्यान करने लगे और ध्यान करते हुए ही वह लुप्त हो गई और उस जगह एक प्रतिमा निकल गई जब लोगों ने इस चमत्कार को तत्कालीन राजा जुब्बल रियासत के राजा को दी तो वह पैदल ही दर्शन करने के लिए माता के मंदिर में आ गया

उसने माता से मन्नत मांगी और कहा कि वह उनके चरणों में सोना चढ़ाएगा जैसे ही उसने प्रतिमा के आगे खुदाई की तो वहां दूध से वह खड्डा भर गया और उसके बाद उस राजा ने यह निर्णय किया कि इस प्रतिमा का यहां पर मंदिर बनाएगा और उसने माता हाटेश्वरी का वहां पर मंदिर बनाया गया।

भागने वाले कलश की मान्यता ?

माता हाटेश्वरी के मंदिर के बाहर एक ताम्र कलश है जिस की मान्यता यह है कि जब भी हाटकोटी में बाढ़ आएगा तब वह कल से जोर-जोर से चीटियां मारेगा और वह भागने लगेगा यह भी मान्यता है कि मंदिर के बाहर ऐसे ही दो कलश थे जो एक कलश था वह ऐसे ही भागकर नदी में जाकर मिल गया तो दूसरे कलश को बचाने के लिए वहां के स्थानीय पुजारी ने उस कलश को लोहे की जंजीरों से बांधकर माता के पैरों पर बांध दिया जिससे कि वह कलश भाग ना सके।

तो मित्रों आशा करता हूं कि आपको भागने वाले कलश की यह सच्ची घटना अच्छी लगी होगी अगर आपको यह घटना अच्छी लगी है और इस कथा को आप अपने मित्रों के साथ शेयर करना चाहते हैं तो हमारे वेबसाइट को अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर शेयर करें।

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